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जीवन का ड्रामा: दुख-सुख के हर दृश्य में छिपा कल्याण

प्रतीकात्मक इमेज: खुली किताब
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–मंथन

आज इंसान बाहर से सफल दिखता है, लेकिन भीतर से बेचैनी और अस्थिरता उसकी सबसे बड़ी सच्चाई बन चुकी है। सुबह की शुरुआत मोबाइल स्क्रीन पर ढेरों संदेशों और खबरों से होती है, दिनभर कार्यस्थल पर प्रतिस्पर्धा और दबाव बना रहता है, और घर लौटते ही रिश्तों की जटिलताएँ सामने खड़ी हो जाती हैं। छोटी-सी आलोचना मन को घायल कर देती है, जबकि छोटी-सी असफलता आत्मविश्वास को हिला देती है। ऐसे समय में सबसे बड़ा प्रश्न यही है—क्या मन को कभी स्थिर और अडोल बनाया जा सकता है?

“ब्रह्माकुमारीज ईश्वरीय विश्व विद्यालय” की शिक्षा कहती है कि जीवन को अगर एक “महान कल्याणकारी ड्रामा” मान लिया जाए, तो हर घटना का बोझ हल्का हो जाता है। जैसे मंच पर कलाकार अपनी भूमिका निभाकर निकल जाते हैं, वैसे ही जीवन की हर परिस्थिति क्षणभंगुर (अल्पकालिक, थोड़े समय के लिए रहने वाली) और पूर्वनिर्धारित है।

यह दृष्टि हमें यह समझाती है कि दुख हो या सुख, हार हो या जीत—सब किसी बड़े कल्याणकारी उद्देश्य का हिस्सा हैं। जब हम इस नजरिये से जीना सीखते हैं, तो शिकायतें मिट जाती हैं और मन हल्का हो जाता है।


महान कल्याणकारी ड्रामा: दुख में छिपा कल्याण

कई घटनाएँ ऐसी होती हैं जो उस पल हमें तोड़ देती हैं, लेकिन समय के साथ वे वरदान साबित होती हैं। यही “महान कल्याणकारी ड्रामा” का चमत्कार है।

महाभारत की मिसाल: कुरुक्षेत्र का युद्ध तत्कालीन समाज के लिए विनाशकारी था। लेकिन उसी से गीता का अमर संदेश निकला, जिसने आने वाली पीढ़ियों को धर्म, कर्तव्य और आत्मबल का मार्ग दिखाया। जो घटना दुखद प्रतीत हुई, वही सबसे बड़ा आध्यात्मिक कल्याण बन गई।

नौकरी छूटने की घटना: कितने ही लोग हैं जिनकी नौकरी अचानक छूट गई (जैसे हाल ही में कोरोना काल में बहुत से लोगों ने अनुभव किया)। उस समय परिवार और समाज में उनकी स्थिति हिल गई। परंतु उसी झटके ने उन्हें नया रास्ता दिखाया—किसी ने व्यवसाय शुरू किया, किसी ने पढ़ाई में खुद को झोंक दिया, और किसी ने अपने हुनर को करियर में बदल लिया। बाद में वही लोग कहते हैं—“अगर वह नौकरी न छूटी होती, तो मैं आज यहां तक न पहुँचता।”

बीमारी की कहानी: किसी गंभीर बीमारी से जूझना बहुत पीड़ादायक होता है। लेकिन वही बीमारी व्यक्ति को अपनी जीवनशैली सुधारने, सेहत पर ध्यान देने और परिवार के साथ समय बिताने की प्रेरणा देती है। बाद में वह समझता है कि उस बीमारी ने ही उसकी जिंदगी को नई दिशा दी।

ये मिसालें साबित करती हैं कि जीवन का हर दृश्य—चाहे वह सबसे विकट परिस्थिति ही क्यों न हो—किसी न किसी गहरे कल्याण का बीज लेकर आता है। यही दृष्टि हमें स्थिर, धैर्यवान और दूरदर्शी बनाती है।

यही है “विपत्ति से वरदान” का सच—जहाँ हर कठिनाई अंततः किसी बड़े कल्याणकारी मोड़ में बदल जाती है।


सुनी-सुनाई बातों से दूरी

“कभी भी सुनी-सुनाई बातों पर विश्वास मत करो”—यह पहला और बुनियादी संदेश है। पड़ोस में किसी ने कहा कि अमुक व्यक्ति ने आपकी बुराई की, और मन तुरंत खट्टा हो गया। ऑफिस में अफवाह उड़ी कि किसी सहकर्मी ने बॉस से आपके खिलाफ बात की, और संबंध बिगड़ गए। सोशल मीडिया पर तो यह और खतरनाक है—बिना सत्यापन के वायरल पोस्ट देखकर लोग आपस में लड़ पड़ते हैं।

पत्रकारिता सिखाती है कि हर सूचना की सत्यता परखना ज़रूरी है। ठीक वैसे ही जीवन में भी हमें फैक्ट-चेकिंग की आदत डालनी चाहिए। जब तक बात प्रमाणित न हो, उसे अपने मन या रिश्तों पर असर न डालने दें। यही दृष्टि हमें अनावश्यक उलझनों से बचाती है।


निंदा से बचाव: सकारात्मकता की राह

“तुम्हें कभी किसी की निंदा नहीं करनी है”—यह शिक्षा सीधे मन को छूती है। परिवार में रिश्ते अक्सर निंदा की वजह से बिगड़ते हैं। ऑफिस में तरक्की पाने वाला साथी आलोचना का शिकार हो जाता है। सोशल मीडिया पर तो आलोचना ही मनोरंजन का साधन बन चुकी है। लेकिन निंदा सामने वाले को नहीं, बल्कि हमें ही कमजोर बनाती है।

आध्यात्मिक दृष्टि कहती है—हर आत्मा अपना पूर्वनिर्धारित रोल निभा रही है। अगर हम यह मान लें तो आलोचना की बजाय करुणा और समझ विकसित होगी। समाज भी तभी शांत और सहयोगी बनेगा जब निंदा की बजाय सकारात्मकता और गुणगान की संस्कृति पनपे।

“निंदा आग की तरह है—जिसे हम दूसरों पर फेंकना चाहते हैं, उसका धुआँ सबसे पहले हमारे मन को ही भर देता है।”


दुख-सुख का सुंदर नाटक

“यह दुख-सुख, हार-जीत का बहुत सुंदर नाटक है”—इस पंक्ति में जीवन का सार छिपा है। मान लीजिए किसी व्यापारी को घाटा हो गया। वह दुखी हुआ, लेकिन यही अनुभव उसे आगे और सावधान और समझदार बना गया। परिवार में संकट आया, पर उसी ने सबको एकजुट कर दिया।

अगर जीवन में कभी दुख न हो तो सुख का मूल्य कौन समझेगा? जैसे अंधेरे के बिना उजाले की पहचान नहीं, वैसे ही कठिनाइयों के बिना सफलता का स्वाद अधूरा है। हर कहानी का दूसरा पहलू होता हैदुख और सुख दोनों मिलकर जीवन की पटकथा को सुंदर बनाते हैं।


दोषारोपण नहीं, जिम्मेदारी

“तुम इस कल्याणकारी ड्रामा में किसी को भी दोषी नहीं बना सकते।”–जीवन की मुश्किलों में हमारी पहली प्रवृत्ति होती है—किसी को दोष देना। पति-पत्नी के झगड़े में हमेशा सामने वाला गलत लगता है, ऑफिस में गलती होने पर सहकर्मी या बॉस को दोष मिलता है, और बीमारी आने पर किस्मत या डॉक्टर को कटघरे में खड़ा कर दिया जाता है। लेकिन दोष देने से हल नहीं निकलता। आध्यात्मिक दृष्टि सिखाती है—जो हुआ, वह होना ही था। उससे सीख लो, दोष मत दो।

अगर परिवार में हर व्यक्ति दोष देने की बजाय जिम्मेदारी स्वीकारे, तो झगड़े आधे हो जाएँ। समाज में भी प्रगति तभी होगी जब हर स्तर पर लोग दोष ढूँढने की बजाय जिम्मेदारी उठाएँ।


साक्षी भाव की शक्ति

“जो बच्चे (परमात्मा के बच्चे) साक्षी-दृष्टा बनकर ड्रामा का हर पार्ट देखते हैं, उनकी स्थिति मधुर समान मीठी बन जाती है।” –ट्रैफिक जाम में फँसे व्यक्ति के पास दो विकल्प होते हैं—या तो गुस्से में बार-बार हॉर्न बजाए, या फिर शांत होकर साक्षी भाव से इंतजार करे। पहला रास्ता तनाव देगा, दूसरा शांति।

घर में विवाद हो और हम साक्षी भाव से देखें, तो झगड़ा जल्दी शांत हो जाता है। ऑफिस में बॉस की डाँट सुनते समय अगर तुरंत प्रतिक्रिया देने की बजाय तटस्थ दृष्टि रखें, तो माहौल बिगड़ने से बच जाता है।

आध्यात्मिक दृष्टि कहती है—साक्षी भाव हमें अचल-अडोल बनाता है। सामाजिक दृष्टि से यह रिश्तों को मधुर करता है, और पत्रकारिता में भी साक्षी भाव ही निष्पक्षता की गारंटी है। जो साक्षी बनता है, वही सचमुच निर्देशक की तरह पूरे नाटक को समझ पाता है।


जीवन के रंग: स्वीकार्यता का सौंदर्य

जीवन केवल दुख और सुख का मेल नहीं है, बल्कि इसमें असंख्य रंग हैं—उम्मीद, संघर्ष, प्रेम, रिश्तों की जटिलता और आत्म-संघर्ष। जब हम हर अनुभव को स्वीकार करना सीख लेते हैं, तब जीवन एक समग्र तस्वीर की तरह सुंदर लगने लगता है।

सोचिए, किसी परिवार में अचानक आर्थिक संकट आ गया। बाहर से यह कठिनाई है, लेकिन उसी ने परिवार को एकजुट कर दिया, बच्चों को जिम्मेदारी का मूल्य सिखाया और रिश्तों में संवाद बढ़ा दिया। या मान लीजिए किसी छात्र को परीक्षा में असफलता मिली। उस पल निराशा स्वाभाविक थी, लेकिन वही असफलता आगे की मेहनत और आत्मविश्वास की नींव बनी।

यानी जीवन के हर रंग—चाहे वह हल्का हो या गहरा—चित्र में सुंदरता ही जोड़ता है। जीवन भी तभी सार्थक बनता है जब हम हर रंग को स्वीकार कर उसे अनुभव का हिस्सा मान लें। यही जीवन का सबसे बड़ा रहस्य है—हर दृश्य कल्याणकारी है, बस उसे देखने की दृष्टि चाहिए।

क्या अंतरराष्ट्रीय मानकों पर खरा उतरने के लिए भारत को विमान हादसों की जांच में बाहरी निगरानी एजेंसियों को शामिल करना चाहिए?

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