
घाटी का खून, देश की टीस
अहमदाबाद, 24 अप्रैल। भारत की आत्मा किसी संविधान की धारा में नहीं, बल्कि उस माँ के सपने में भी है जो पहली बार बर्फ देखने आई थी। उस पिता की उम्मीद में भी है जो अपने बच्चों के साथ घाटी में शांति महसूस करना चाहता था। और उस मुस्कान में भी है जो कैमरे में कैद होनी थी, लेकिन अब सिर्फ शोक संदेश बनकर रह गई।
22 अप्रैल 2025 को बैसरन घाटी, पहलगाम में जो हुआ, वह एक साधारण आतंकी हमला नहीं था। यह वह क्षण था जब आतंक ने ‘नाम’ और ‘धर्म’ पूछकर गोली चलाई — और जवाब न मिलने पर मौत दी। यह नरसंहार नहीं, यह भारतीय गणराज्य की आत्मा पर हमला था।
The Guardian Economic Times की रिपोर्ट के अनुसार इस हमले में कुल 26 पर्यटकों की जान गई, जिनमें पुरुषों के साथ-साथ महिलाएं और बच्चे भी शामिल थे — यह केवल पुरुषों को निशाना बनाने वाला हमला नहीं था। (हालांकि भारत सरकार द्वारा अभी तक मृतकों के लिंग और आयु वर्ग के आधार पर कोई आधिकारिक आंकड़ा सार्वजनिक रूप से जारी नहीं किया गया है। उपरोक्त जानकारी स्वतंत्र पत्रकारों और मीडिया रिपोर्टों पर आधारित है।)
प्रारंभिक रिपोर्टों में कहा गया था कि हमलावरों ने नाम पूछकर लोगों को कतार में खड़ा किया और उनकी धार्मिक पहचान के आधार पर गोली चलाई। बाद में सामने आया कि इस हमले में नई दुल्हनों, माताओं और बच्चों की भी जान गई है।
हमले के दौरान आतंकी सैन्य वर्दी में थे और उन्होंने धार्मिक पहचान पूछकर लक्षित हत्या की। यह न केवल एक सुनियोजित आतंकी हमला था, बल्कि भारत की साझा नागरिकता और धर्मनिरपेक्ष विश्वास पर सीधा प्रहार भी था। एक स्थानीय मुस्लिम पोनी ऑपरेटर ने पर्यटकों की जान बचाते हुए प्राण त्यागे — और इस तरह इंसानियत की अंतिम आवाज़ बन गए।
“खुली किताब” मानती है कि यह हमला अब केवल ‘राष्ट्रीय सुरक्षा’ का मुद्दा नहीं रहा — यह अब नागरिक विवेक, संवैधानिक प्रतिबद्धता, और सांस्कृतिक आत्मरक्षा की कसौटी बन चुका है। अगर हम इस चेतावनी को नजरअंदाज़ करते हैं, तो हर नया हमला केवल आंकड़ों का विस्तार होगा — और हमारी चुप्पी उसका औचित्य।
घटना का सार और पीड़ितों की गवाही (The Guardian)
- असावरी जगदाले (महाराष्ट्र): “मेरे पिताजी आयतें नहीं पढ़ सके… और उन्हें गोली मार दी गई।”
- देबाशीष भट्टाचार्य (असम): “मैंने जो भी आयत याद थी, पढ़ दी। शायद इसीलिए जिंदा हूं।”
यह ‘सेलेक्टिव किलिंग’ थी — धार्मिक पहचान के आधार पर की गई हत्या। यह भारत के धर्मनिरपेक्ष तानेबाने को लक्ष्य बनाने की एक सोची-समझी साजिश है।
जिम्मेदारी और हमलावरों की पहचान (Indian Express)
- जिम्मेदारी: ‘The Resistance Front’ (TRF) — लश्कर-ए-तैयबा का छद्म संगठन।
- हमलावर: कम से कम 5, जिनमें 3 पाकिस्तान से और 2 स्थानीय।
- तकनीक: बॉडी कैमरा से हमला रिकॉर्ड किया गया।
- इनाम: 20 लाख प्रति आतंकी का इनाम घोषित।
- भागने का रास्ता: पिर पंजाल रेंज की ऊँचाइयों की ओर।
सरकारी प्रतिक्रिया: निर्णायक या प्रतीकात्मक? (BBC Hindi)
भारत सरकार ने हमले के अगले दिन कैबिनेट कमिटी ऑन सिक्योरिटी की बैठक में सिंधु जल संधि को स्थगित करने का निर्णय लिया।
- प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने विदेश यात्रा अधूरी छोड़कर दिल्ली लौटने का निर्णय लिया।
- गृह मंत्री अमित शाह ने घटनास्थल का दौरा किया और कहा, “भारत आतंक के सामने झुकेगा नहीं।”
- अन्य निर्णय:
- पाकिस्तान के उच्चायोग का आकार घटाया गया।
- सार्क वीज़ा सुविधा निलंबित।
- अटारी-वाघा सीमा अस्थायी रूप से बंद।
स्थानीय प्रतिक्रिया: जब एक कश्मीरी ने जान देकर बचाया (The Hindu)
- एक स्थानीय मुस्लिम नागरिक ने पर्यटकों को बचाने की कोशिश की और शहीद हो गया।
- कश्मीर घाटी में आम नागरिकों ने आतंक के खिलाफ मौन जुलूस निकालकर इसका विरोध किया।
पर्यटन और अर्थव्यवस्था को झटका (Indian Express)
- “The Pahalgam story has ended this season.”
- होटल, टैक्सी, रेस्टोरेंट, हस्तशिल्प सभी सेक्टर 80% तक प्रभावित।
- स्थानीय लोगों के अनुसार: “यह हमला केवल जान पर नहीं, रोटी पर भी है।”
“इ ख़बर टुडे” के संस्थापक-संपादक का दृष्टिकोण
“इ ख़बर टुडे ” के संस्थापक-संपादक तुषार कोठारी ने खुली किताब से बातचीत में कहा:
“यह हमला न केवल निर्दोष नागरिकों के जीवन पर हमला है, बल्कि कश्मीर की उस छवि को भी गहरा आघात पहुंचाता है, जिसे वर्षों की कोशिशों से फिर से खड़ा किया गया था। भारत को इस बार केवल जवाब नहीं, ऐसा ठोस एक्शन देना होगा जो आने वाली पीढ़ियों के लिए उदाहरण बने” उन्होंने कहा कि इस घटना का सबसे बड़ा असर पर्यटन पर पड़ेगा। पहलगाम जैसे संवेदनशील और सुंदर स्थानों से पर्यटकों का भरोसा डगमगाएगा, और स्थानीय लोगों की आजीविका को दीर्घकालिक नुकसान उठाना पड़ सकता है।”
विपक्षी नेताओं की प्रतिक्रियाएं
- राहुल गांधी (कांग्रेस): “सरकार को जवाबदेही लेनी चाहिए, न कि कश्मीर में हालात सामान्य होने के खोखले दावे करने चाहिए।”
- उमर अब्दुल्ला (NC): “मैं अविश्वसनीय रूप से स्तब्ध हूं। हमारे मेहमानों पर यह हमला एक घृणित कृत्य है। कोई भी शब्द इस हमले की निंदा के लिए पर्याप्त नहीं हैं।” उन्होंने कहा कि “हमारे मेहमानों का घाटी से जाना दिल तोड़ने वाला है, लेकिन हम समझते हैं कि वे क्यों जा रहे हैं।”
- सज्जाद लोन (पीपुल्स कॉन्फ्रेंस): “पूरा कश्मीर ‘खून के आंसू’ बहा रहा है।”
अंतरराष्ट्रीय नेताओं की विस्तृत प्रतिक्रियाएं
भारत पर हुए इस सुनियोजित हमले के बाद अंतरराष्ट्रीय मंचों से गूंजती प्रतिक्रियाओं ने यह सिद्ध किया कि आतंक के विरुद्ध भारत अकेला नहीं है। विश्व के अनेक नेताओं ने न केवल इस बर्बरता की कड़ी निंदा की, बल्कि भारत के साथ कंधे से कंधा मिलाकर खड़े रहने का स्पष्ट संदेश भी दिया। यहां क्लिक कर पूरी सूची पढ़ें
जब चुप्पी, साझी पहचान को निगल जाए
यह रिपोर्ट केवल मृतकों की गिनती नहीं करती, यह राष्ट्रीय विवेक को टटोलती है। जब आतंकी यह तय करते हैं कि किस धर्म के नागरिक को जीने का अधिकार है — तब यह केवल आंतरिक सुरक्षा का विषय नहीं, संवैधानिक अस्तित्व का संकट बन जाता है।
भारत को अब प्रतिक्रियात्मक नहीं, रणनीतिक और निर्णायक रास्ता अपनाना होगा। क्योंकि यह हमला किसी क्षेत्र पर नहीं — भारतीय होने की पहचान पर था।
अगर हम आज भी खामोश हैं, तो यह खामोशी कल हमारी उस साझा पहचान को भी अनसुना कर सकती है, जो भारत को भारत बनाती है — हर नागरिक की बराबरी, हर आवाज़ का सम्मान, और उस संविधान की आत्मा जिसे हमने मिलकर रचा है। अब वक्त है कि हम सिर्फ सुनें नहीं, समझें — और साथ खड़े हों, ताकि हमारी चुप्पी कभी किसी और की चीख में न बदल जाए।