खबर का असर
कड़वा-मीठा सच
-नीलेश कटारिया
अहमदाबाद, 17 फरवरी। गुजरात हाईकोर्ट में राधनपुर अदालत से एक आपराधिक मामले (क्रिमिनल केस नंबर 75/2010) की फाइल गायब होने और सच्चाई सामने लाने वाले न्यायमूर्ति को केस से हटाए जाने की घटना ने न्यायपालिका की कार्यप्रणाली और पारदर्शिता पर सवालिया निशान लगा दिया है। इस प्रकरण को लेकर खुली किताब, सहित कई प्रमुख मीडिया संस्थानों ने रिपोर्ट प्रकाशित की। इन खबरों के बाद पूरे न्यायिक तंत्र और कानूनी जगत में हलचल मच गई।
इन मीडिया रिपोर्ट्स के बाद, गुजरात हाईकोर्ट एडवोकेट्स एसोसिएशन (GHAA) ने आज एक आपात बैठक (विशेष आमसभा) बुलाई। इस बैठक में न्यायपालिका की गरिमा और स्वतंत्रता को सुरक्षित रखने के लिए कड़ा प्रस्ताव पारित किया गया, जिसकी प्रति भारत के प्रधान न्यायाधीश (CJI) को भी भेजी गई है।
क्या है पूरा मामला?
हाल ही में इस मामले का खुलासा हुआ था कि राधनपुर अदालत (जिला पाटन) में एक आपराधिक मामले (क्रिमिनल केस नंबर 75/2010) की फाइल गायब हो गई थी। जब न्यायमूर्ति संदीप एन. भट्ट ने इस पर सख्त रुख अपनाते हुए जांच के आदेश दिए, तो हाईकोर्ट की रजिस्ट्री में बैठे एक प्रभावशाली अधिकारी ए.टी. उक्राणी पर सवाल उठे। यह वही अधिकारी थे, जिन पर 2019 में सूरत अदालत से 15 फाइलें गायब करने का आरोप था। उस समय भी उनके खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं हुई थी।
अदालत में प्रस्तुत रिपोर्ट के अनुसार, 2019 में सूरत जिला अदालत के तत्कालीन 6वें अतिरिक्त जिला न्यायाधीश ए.टी. उक्राणी ने अपने तबादले के बाद 15 फाइलें और उनके निर्णय अपने साथ ले गए थे। सात महीने तक उन फाइलों की कोई जानकारी नहीं थी। 13 अगस्त 2019 को आखिरकार वह फाइलें लौटीं। इस घटना के बाद भी उक्राणी के खिलाफ कोई कठोर कार्रवाई नहीं हुई। उन्हें बाद में हाईकोर्ट की रजिस्ट्री में नियुक्त किया गया, जहां वह बीते छह वर्षों से एक महत्वपूर्ण प्रशासनिक पद पर कार्यरत हैं।
न्यायमूर्ति संदीप एन. भट्ट ने 13 फरवरी 2025 के अपने आदेश में इस तथ्य पर आश्चर्य व्यक्त करते हुए कहा कि यह अधिकारी पिछले छह वर्षों से रजिस्ट्री में प्रभावशाली पद पर कार्यरत है और इस अवधि में न्यायालय के आदेशों के पालन में जानबूझकर देरी करने के आरोप भी उन पर लगे हैं। न्यायमूर्ति भट्ट ने आदेश में यह भी कहा कि यह व्यक्ति स्वयं को ‘सर्वशक्तिमान’ (Omnipotent) समझता है।
GHAA की आपात बैठक
खुली किताब, बार एंड बेंच, लाइव लॉ, गुजरात समाचार की रिपोर्ट के बाद, GHAA के अध्यक्ष बृजेश त्रिवेदी के नेतृत्व में 17 फरवरी को अधिवक्ताओं की आपात बैठक बुलाई गई। बैठक में वकीलों ने एक सुर में न्यायपालिका की गरिमा और स्वतंत्रता को बचाने की बात कही। वरिष्ठ अधिवक्ता असीम पंड्या, यतीन ओझा, भार्गव भट्ट, दिपेन दवे, पर्सी कविना सहित अनेक अधिवक्ता (एडवोकेट) बैठक में शामिल हुए।
बैठक के बाद GHAA ने जो प्रस्ताव पारित किया, उसके मुख्य बिंदु इस प्रकार हैं:
- विवादित आदेश पर पुनर्विचार किया जाए और न्यायपालिका की गरिमा को बहाल किया जाए।
- न्यायपालिका की स्वतंत्रता बनाए रखने और जनता का विश्वास बहाल करने के लिए जरूरी कदम उठाए जाएं।
- भारत के प्रधान न्यायाधीश (CJI) और सुप्रीम कोर्ट के कोलेजियम को पत्र भेजकर इस मामले से अवगत कराया जाए।
- यदि आवश्यक हो तो गुजरात हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश के स्थानांतरण (ट्रांसफर) की मांग की जाए।
- प्रस्ताव की प्रति भारत के प्रधान न्यायाधीश को भेजी जाए।
अब आगे क्या होगा? सुप्रीम कोर्ट क्या कदम उठा सकता है?
GHAA द्वारा भेजे गए प्रस्ताव के बाद अब सबकी नजरें सुप्रीम कोर्ट और प्रधान न्यायाधीश (CJI) की प्रतिक्रिया पर टिकी हैं। आम लोगों में यह जानने की जिज्ञासा है कि इस मामले में आगे क्या हो सकता है:
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कोलेजियम की प्रक्रिया:
- मुख्य न्यायाधीश के स्थानांतरण या हाईकोर्ट के किसी भी जज को लेकर निर्णय सुप्रीम कोर्ट के कोलेजियम द्वारा लिया जाता है। इसमें CJI के साथ सुप्रीम कोर्ट के चार वरिष्ठतम न्यायाधीश शामिल होते हैं।
- कोलेजियम इस प्रस्ताव पर विचार कर सकता है। यदि वह स्थानांतरण उचित समझता है, तो राष्ट्रपति को इसकी सिफारिश की जाती है।
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प्रत्यक्ष या परोक्ष वार्ता:
- आमतौर पर, ऐसे मामलों में सार्वजनिक प्रतिक्रिया देने के बजाय बंद दरवाजों के पीछे बातचीत होती है। संभव है कि सुप्रीम कोर्ट और गुजरात हाईकोर्ट के बीच आंतरिक संवाद हो।
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रोस्टर बदलने का अधिकार:
- कानूनी प्रक्रिया में मुख्य न्यायाधीश के पास किसी भी न्यायाधीश का रोस्टर बदलने का विशेषाधिकार होता है। इस निर्णय को चुनौती देना मुश्किल होता है।
- लेकिन यदि बार और अधिवक्ता वर्ग लगातार दबाव बनाए रखता है, तो मुख्य न्यायाधीश को अपनी स्थिति स्पष्ट करनी पड़ सकती है।
न्यायिक गलियारों में अटकलें और आम जनता की प्रतिक्रिया
GHAA की बैठक और मीडिया रिपोर्ट्स के बाद न्यायिक गलियारों में कानाफूसी तेज हो गई है। कुछ वरिष्ठ अधिवक्ताओं का कहना है कि यह न्यायपालिका की स्वतंत्रता पर सवाल उठाने वाला मामला बन गया है। वहीं, कुछ का कहना है कि बार और बेंच के बीच ऐसा टकराव आगे चलकर न्याय व्यवस्था के लिए नुकसानदेह हो सकता है।
आम जनता में भी इस मामले को लेकर चिंता है:
- अहमदाबाद के दिलीप मेहता ने कहा, “हम कोर्ट को न्याय का मंदिर मानते हैं। पर जब फाइलें गायब होती हैं और सच्चाई दिखाने वाले जज को हटा दिया जाता है, तो हम कहां जाएंगे?”
- नीता पटेल ने कहा, “महिलाओं के लिए अदालत अंतिम उम्मीद है। यदि वहां भी दबाव और राजनीति होगी, तो न्याय कैसे मिलेगा?”
मीडिया कवरेज
खुली किताब, बार एंड बेंच, लाइव लॉ, गुजरात समाचार सहित कई मीडिया संस्थानों ने इस घटना पर खबरें प्रकाशित की हैं। इन रिपोर्ट्स ने अधिवक्ता वर्ग के साथ-साथ आम जनता को भी इस मुद्दे की गंभीरता से अवगत कराया है।