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जब पत्रकारिता ने लिया ‘विधि से सिद्धि’ का व्रत…

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–मंथन

नया मंच, नई मशाल: विचार की लौ के साथ

हर नव निर्माण की शुरुआत एक मंत्र से होती है। हर यज्ञ की पूर्णता एक आहुति से। और हर वैचारिक मंच की यात्रा प्रारंभ होती है आत्मावलोकन और जिम्मेदारी की चेतना से।
आज “खुली किताब” न केवल एक नया डिज़िटल स्वरूप प्राप्त कर रहा है, बल्कि पत्रकारिता की उस मशाल को फिर से प्रज्वलित कर रहा है जो सत्य, विधि और विवेक की लौ से जलती है। यह मंच अब तेज़ है, तकनीकी रूप से सक्षम है — लेकिन उससे भी ज़्यादा, यह अब वैचारिक रूप से सजग और मूल्यनिष्ठ बनने की दिशा में अग्रसर है।
इसी भावभूमि पर, खुली किताब एक नया स्तंभ आरंभ कर रहा है — ‘विचार पथ’ — जो केवल विचार नहीं देगा, बल्कि समाज के भीतर झाँकने का साहस, और बदलने की दिशा देगा।
और इस नवयात्रा की पहली आहुति है यह विशेष आलेख —विधि से सिद्धिजो केवल एक विषय नहीं, बल्कि हमारी पत्रकारिता का संवेदनशील और साहसी उद्घोष है।

“जब जीवन में नियमों की पुस्तक खुली हो, न्याय का तराजू संतुलित हो, चेतना ध्यानमग्न हो और लक्ष्य सत्य की ओर हो — तभी विधि से सिद्धि संभव है।”


विधि ही वह यज्ञ है, जिससे सिद्धि की पूर्णाहुति संभव है

“विधि से सिद्धि” — यह वाक्य केवल चार शब्दों का संयोग नहीं, बल्कि भारतीय सभ्यता की हज़ारों वर्षों की आत्मिक चेतना का सार है। यह दर्शन बताता है कि जीवन में सफलता (सिद्धि) केवल शक्ति, साधन या संयोग से नहीं मिलती — बल्कि विधि, यानी मर्यादा, नियम, नैतिकता और न्याय के पथ पर चलकर ही स्थायी और सार्थक सिद्धि प्राप्त होती है।

आज जब समाज तेज़ी से प्रगति की दौड़ में भाग रहा है, तब यह विषय और अधिक प्रासंगिक हो गया है कि क्या हम सफलता को सही राह से, विधिक व नैतिक मार्ग से प्राप्त कर रहे हैं? या हमने सिर्फ परिणाम को ही महत्व देकर साधनों और पद्धतियों को भुला दिया है?


जब धर्म बनता है विधि की आत्मा: शास्त्रों में छिपे जीवन के सूत्र

भारतीय दर्शन में धर्म को केवल धार्मिक क्रियाओं तक सीमित नहीं माना गया, बल्कि यह एक समग्र विधि है — जो मानव जीवन के प्रत्येक पक्ष को संयम, करूणा, सत्य और कर्तव्य से जोड़ती है।

भगवद्गीता में श्रीकृष्ण कहते हैं —

“सिद्ध्यसिद्ध्योः समो भूत्वा समत्वं योग उच्यते”

(सफलता और असफलता में सम रहने वाला ही सच्चा योगी है।)

यहाँ स्पष्ट संकेत है कि विधि — चाहे वह कर्म की हो या नियम की — केवल सफलता के लिए नहीं, बल्कि आत्म-निर्माण के लिए आवश्यक है। जब हम विधिक रूप से जिएं, तब ही आत्म-सिद्धि संभव होती है।

यह दृष्टिकोण हमारे प्राचीन शास्त्रों में भी प्रतिध्वनित होता है —

“धर्मो रक्षति रक्षितः” — यदि हम धर्म यानी नैतिक आचरण और विधिपूर्वक मार्ग की रक्षा करते हैं, तो वही धर्म संकट में हमारी रक्षा करता है।

“सत्यं वद, धर्मं चर।” — जीवन का सार केवल सच्चा बोलना नहीं, बल्कि जीवन भर धर्म यानी कर्तव्य और मर्यादा का पालन करना है।

“न हि कश्चित् क्षणमपि जातु तिष्ठत्यकर्मकृत्।” — कोई भी व्यक्ति एक क्षण भी निष्क्रिय नहीं रह सकता — लेकिन कर्म तभी सार्थक होता है जब वह विधिपूर्वक हो।

इन श्लोकों से स्पष्ट है कि हमारी सभ्यता की आत्मा केवल कर्म करने में नहीं, बल्कि उसे धर्मयुक्त और विधिपूर्ण ढंग से करने में है।


विधि-विहीन सिद्धि: विनाश की ओर

आज के समाज में यदि हम चारों ओर देखें तो कई लोग ‘सिद्धि’ की आकांक्षा में ‘विधि’ को तिलांजलि दे देते हैं। राजनीति में सत्ता पाने की होड़ हो या व्यापार में लाभ कमाने की लालसा।

शिक्षा, प्रशासन, चिकित्सा, कानून – हर क्षेत्र में अगर विधि यानी नैतिकता, ईमानदारी और पारदर्शिता न हो, तो सिद्धि कितनी भी चमकदार क्यों न हो — वह टिकाऊ नहीं होती, सम्मानजनक नहीं होती।

बिना पात्रता के मिली शक्ति विनाशकारी हो सकती है,
बिना विधि के मिली सफलता अंततः पतन का कारण बनती है।


करें और न करें (Do’s & Don’ts for True Siddhi)

करें क्यों करें न करें क्यों न करें
सत्य बोलें सत्य से आत्मबल और विश्वास बनता है झूठ बोलें अस्थायी लाभ के बाद अपयश और पछतावा मिलता है
धैर्य रखें विधिपूर्वक पथ हमेशा धीमा होता है लेकिन स्थायी फल देता है शॉर्टकट अपनाएं शॉर्टकट तात्कालिक परिणाम देता है लेकिन दीर्घकाल में हानि
नियमों का पालन करें व्यवस्था में विश्वास बनाए रखता है अनैतिक उपाय अपनाएं कानून और समाज दोनों का क्षरण होता है
सामाजिक कल्याण सोचें सफलता तब सार्थक होती है जब उससे दूसरों को लाभ मिले केवल स्वार्थ देखें ऐसा दृष्टिकोण समाज और आत्मा दोनों से दूर कर देता है

स्वयं से संवाद: जब जीवन का लक्ष्य विधि से जुड़ता है

हर मनुष्य जीवन में कुछ न कुछ पाना चाहता है — यश, पैसा, प्रतिष्ठा, ज्ञान, प्रेम। लेकिन यह प्रश्न हमें स्वयं से पूछना होगा —क्या वह जो मैं पाना चाहता हूं, वह मैं विधि से प्राप्त कर रहा हूं?

यदि नहीं, तो वह सफलता शायद बाहरी रूप से चमकदार हो सकती है, पर अंदर से खोखली होगी — ऐसी सफलता आत्मा को संतोष नहीं देती, समाज में सम्मान नहीं दिलाती।

इसलिए समय-समय पर अपने भीतर झांकना ज़रूरी है — और स्वयं से तीन ईमानदार प्रश्न पूछना:

1. क्या मेरा मार्ग सत्य और धर्म से जुड़ा है?
हर व्यक्ति जीवन में सफलता चाहता है, पर क्या वह मार्ग जिसे हमने चुना है — वह सत्य, ईमानदारी और धर्म के अनुरूप है? धर्म का अर्थ केवल पूजा-पाठ नहीं, बल्कि अपने कर्तव्यों, जिम्मेदारियों और आचरण की शुद्धता से है। अगर हमारा रास्ता सत्य से दूर है, तो चाहे हमें कितनी भी सिद्धि मिल जाए, वह आत्मा को शांति नहीं दे सकती।

2. क्या मेरी सिद्धि किसी और के अधिकार का हनन नहीं कर रही?
कई बार हम अपने लक्ष्य की प्राप्ति में इतने लीन हो जाते हैं कि अनजाने में दूसरों के हक को कुचल देते हैं। यदि हमारी सफलता किसी और की स्वतंत्रता, सुरक्षा या न्याय को नुकसान पहुँचा रही है, तो वह सिद्धि नहीं, अन्याय है। धर्म और विधि का मार्ग यही सिखाता है कि अपनी सफलता के लिए दूसरों के हिस्से की जमीन न छीनी जाए।

3. क्या मैं अपने लक्ष्य तक विधिपूर्वक पहुंच रहा हूं?
सपने देखना आसान है, लेकिन उन्हें विधिक, नैतिक और मर्यादित मार्ग से पूरा करना ही असली परीक्षा है। यदि हम नियमों, कानून, मर्यादा और संयम की अनदेखी करके आगे बढ़ते हैं, तो वह सफलता कभी स्थायी नहीं होती। विधिपूर्वक प्राप्त सिद्धि ही समाज में सम्मान दिलाती है, और आत्मा को सच्चा संतोष देती है।


वो जिन्होंने सिद्धि को विधि से गढ़ा

डॉ. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम
गरीबी और सीमित संसाधनों के बावजूद उन्होंने जीवन में कभी अनुशासन और मेहनत से समझौता नहीं किया। उनका जीवन दर्शाता है कि यदि पथ विधिपूर्वक हो, तो कोई भी साधारण व्यक्ति असाधारण बन सकता है।

जस्टिस एच.आर. खन्ना
आपातकाल में वे अकेले न्यायमूर्ति थे जिन्होंने सरकार के विरुद्ध खड़े होकर नागरिक अधिकारों की रक्षा की। उन्होंने पद की परवाह किए बिना विधि और संविधान की गरिमा को प्राथमिकता दी।

सुदर्शन पटनायक
बिना किसी संसाधन या मीडिया समर्थन के, उन्होंने अपनी रेत-कला से भारत को वैश्विक पहचान दिलाई। उन्होंने कभी शॉर्टकट नहीं अपनाया — केवल साधना को अपनाया।


जब जनआंदोलन बने विधि के प्रहरी

RTI आंदोलन
बिना किसी उग्र प्रदर्शन या हिंसा के, नागरिकों ने संविधान के भीतर रहकर कानून बनवाया। यह विधिपूर्वक मिली सबसे प्रभावशाली लोकतांत्रिक सिद्धियों में से एक है।

चिपको आंदोलन
महिलाओं ने पेड़ों को गले लगाकर पर्यावरण रक्षा का प्रतीक बना दिया — बिना हिंसा, केवल नैतिक साहस के साथ।

अरुणा रॉय और MKSS
मजदूरों के अधिकारों को विधिक मार्ग से आवाज़ दी, और उनकी मांगों ने MNREGA जैसे कानून को जन्म दिया।


सिर्फ मंज़िल नहीं, रास्ता भी सही हो

आज की पीढ़ी तेज़ परिणाम चाहती है — लेकिन यदि जीवन की नींव विधिपूर्वक न रखी जाए, तो ऊँचाई खोखली रह जाती है।
चाहे परीक्षा हो या करियर, संयम और ईमानदारी के बिना मिली सफलता अक्सर टूट जाती है।
सोशल मीडिया पर लोकप्रियता या लाइक्स भले मिल जाएं, लेकिन यदि वो असत्य, अपुष्ट या उग्र विचारों पर आधारित हो — तो वह हानिकारक बन सकती है।

युवाओं को यह समझना ज़रूरी है कि ‘सिद्धि’ की असली चमक तभी टिकती है जब वह ‘विधि’ की रोशनी में होती है।

पाठकों से अपील: आपकी कलम, हमारी किताब

यदि आपके ईर्द-गिर्द कहीं अन्याय, भेदभाव, अनीति, असुरक्षा, भ्रष्टाचार या अव्यवस्था हो —यदि आपके पास कोई प्रेरक सुझाव या अनुभव हो —तो ‘खुली किताब’ में आप उसे आलेख, अनुभव या विश्लेषण के रूप में ईमेल द्वारा भेज सकते हैं।

संपर्क: khulikitabnews@gmail.com

आपके द्वारा भेजी गई सामग्री केवल ‘खुली किताब’ की संपादकीय नीति, पत्रकारिता सिद्धांतों और गुणवत्ता मानकों की समीक्षा एवं स्वीकृति के उपरांत ही प्रकाशित की जाएगी। प्रकाशन का अधिकार ‘खुली किताब’ के विवेकाधिकार (editorial discretion) पर आधारित होगा।


पथ का संकल्प

विधि से सिद्धि” केवल एक लेख का शीर्षक नहीं — यह खुली किताब की पत्रकारिता का जीवंत संकल्प है। यह हमारी सोच, हमारी दिशा और हमारी ज़िम्मेदारी का वैचारिक पुनर्जन्म है।

अब हमारा उद्देश्य सिर्फ खबरें देना नहीं, बल्कि पत्रकारिता को समाज की अंतरात्मा में बदलना है — जहां हर रिपोर्ट के पीछे एक जिम्मेदारी हो, हर आलोचना के साथ समाधान हो, और हर शब्द में संवेदना की आंच हो।

हम मानते हैं कि पत्रकारिता केवल सूचना देने का माध्यम नहीं, बल्कि न्याय की मशाल, विवेक की चेतना और समाज की आत्मा को जाग्रत करने का औजार है। हम सनसनी नहीं परोसेंगे, हम संविधान और संवेदना के बीच पुल बनाएंगे।

हम सिर्फ ‘क्या हुआ’ नहीं बताएंगे, बल्कि ‘क्यों हुआ’, ‘कैसे हुआ’ और ‘अब क्या होना चाहिए’ — यह भी टटोलेंगे।

हमारी पहचान और सिद्धि उस मार्ग से ही होगी जो विधिक, नैतिक और सामाजिक दृष्टि से उचित हो। यह वही यात्रा है — जो विधि से होकर सत्य और सार्थक सिद्धि तक पहुँचती है।

“खुली किताब” अब केवल एक मंच नहीं, एक वैचारिक आंदोलन है — जो हर पाठक को पत्रकारिता के साथ सोचने, सवाल करने और समाज के साथ चलने के लिए आमंत्रित करता है।


लेख के पीछे की प्रेरणा

यह कोई योजनाबद्ध लेखन नहीं था। एक छोटा-सा वीडियो देखा — महज़ कुछ सेकंड का — लेकिन उसमें कहे गए शब्दों ने जैसे मेरी अंतरात्मा को झकझोर दिया।

‘सफलता सिर्फ मेहनत से नहीं, विधिपूर्वक साधना से मिलती है’ — यही वाक्य मेरे भीतर कहीं गूंजता रहा।

मन में विचार आया कि क्या आज का समाज, आज की पत्रकारिता, आज की राजनीति, यहां तक कि हम स्वयं — क्या हम विधिपूर्वक चल रहे हैं?

इसी भावभूमि पर मैंने यह लेख लिखा: ‘विधि से सिद्धि’, जिसमें धर्म, न्याय, मर्यादा और आत्मिक अनुशासन के आयामों को समेटने का प्रयास किया है।

प्रेरणास्रोत वीडियो:

https://youtube.com/shorts/Nd5hjlt4uV0?si=CEFNnw87iz4rL80s

 

 

 

 

 

 

 

 

क्या मीडिया की चुप्पी हादसों की असली वजह जानने के जनता के अधिकार को नुकसान पहुँचाती है?

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