
जमानत पर सवाल, सिस्टम नंगा
अहमदाबाद, 18 अप्रैल। रात का तीसरा पहर था। बनारस की सड़कों पर चहल-पहल थम चुकी थी। फुटपाथ पर एक माँ अपने चार साल के बेटे को पास में लिटाकर सो रही थी—गर्मी की रात थी, लेकिन उनके जीवन में कोई सुरक्षा नहीं थी। सुबह जब नींद खुली, तो बच्चा गायब था।
अगले ही पल चीख उठी वो माँ..काँपती आवाज़, सूनी निगाहें, और फटी हुई कोख से निकली वो पुकार जो सन्नाटे को चीरती हुई दूर तक गूंजी, लेकिन उस सिस्टम तक नहीं पहुँची जो उसकी रक्षा का दावा करता है।
शुरुआत में पुलिस ने इसे साधारण गुमशुदगी माना।
लेकिन जब मोबाइल लोकेशन और संदिग्ध बयानों की जांच शुरू हुई, तो सामने आया एक ऐसा सच जिसने पूरे सिस्टम को कटघरे में खड़ा कर दिया—एक संगठित बाल तस्करी का रैकेट, जिसमें बच्चे नाम, चेहरा और रिश्ता खोकर सिर्फ कीमत बन चुके थे।
यह सिर्फ एक बच्चा नहीं था—ऐसी तीन घटनाएं सामने आईं, तीन परिवार, तीन माताएँ, और हर बार वही पीड़ा, वही तस्करी।
जब यह मामला सुप्रीम कोर्ट पहुँचा, तो अदालत ने सख्ती से कहा: “यह महज़ अपहरण नहीं, यह सुनियोजित, लाभकारी मानव तस्करी है। यह मंडी है—बचपन की बोली लगती है।
बनारस की तीन रातें: तीन मासूम, तीन चीखें — एक ही तस्करी का जाल
केस 1 – रोहित (FIR 193/2023, भेलूपुर, वाराणसी):
15 मई 2023 की रात भेलूपुर इलाके के एक फुटपाथ पर संजय अपनी पत्नी और चार वर्षीय बेटे रोहित के साथ सो रहे थे। सुबह जब उनकी आँख खुली, तो रोहित वहीं से लापता था—कोई शोर नहीं, कोई आहट नहीं।
शुरुआती छानबीन में पुलिस के हाथ कोई ठोस सुराग नहीं लगा, लेकिन मोबाइल लोकेशन और संदिग्ध गतिविधियों के विश्लेषण के बाद झारखंड तक कड़ी पहुँची। गिरफ्तारी के बाद आरोपी संतोष गुप्ता ने स्वीकार किया कि वह बच्चों को विभिन्न राज्यों में संतानहीन दंपतियों को लाखों रुपये में बेचता था। यह केस पूरे रैकेट के सामने आने की पहली कड़ी बना।
केस 2 – मोहिनी (FIR 50/2023, चेतगंज, वाराणसी):
28 मार्च 2023 की रात एक वर्षीय मोहिनी अपने पिता शमशेर सिंह के साथ चेतगंज के पुल के नीचे सो रही थी, जब कोई उसे चुपचाप उठा ले गया परिवार ने उसे पहले इधर-उधर तलाशा, लेकिन जब कोई जानकारी नहीं मिली, तो 29 मई को एफआईआर दर्ज कराई गई।
जांच में यह सामने आया कि बच्ची को तस्करी के जरिए कोलकाता में एक दंपति को बेच दिया गया था, जहाँ से उसे पुलिस ने बरामद किया। यह केस भी भेलूपुर के मामले की जांच के दौरान ही उजागर हुआ और उसी गिरोह से जुड़ा पाया गया।
केस 3 – बहुबली (FIR 201/2023, कैंट, वाराणसी):
30 अप्रैल 2023 की रात ढाई बजे के करीब कैंट थाना क्षेत्र की एक झोपड़ी से पिंकी नामक महिला का एक वर्षीय बेटा बहुबली रहस्यमय तरीके से गायब हो गया। पिंकी ने शोर मचाया, मोहल्ले वाले जागे, लेकिन बच्चा कहीं नहीं मिला। एफआईआर दर्ज हुई और पुलिस ने इस केस को भी भेलूपुर मामले से जोड़ते हुए जांच की दिशा बढ़ाई।
बहुबली को झारखंड से बरामद किया गया, लेकिन इस मामले में गिरोह ने एक नया तरीका अपनाया था—बच्चे को वीडियो कॉल पर संभावित खरीदार को दिखाया गया, माता-पिता से पहचान कराई गई और फिर सौदे की रकम तय की गई। यह घटना बताती है कि यह रैकेट केवल राज्यों की सीमाएं नहीं लांघ रहा था, बल्कि अब तकनीक का भी संगठित दुरुपयोग कर रहा था।
सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा: आदेश के 5 स्तंभ
इस आदेश में सुप्रीम कोर्ट ने सिर्फ नीति और तंत्र पर सवाल नहीं उठाए, बल्कि न्यायिक प्रक्रिया की बुनियादी लापरवाही को भी सामने रखा।
कोर्ट ने स्पष्ट किया कि तीनों मामलों में चार्जशीट (Chargesheet) तो दाखिल हो चुकी थी, लेकिन अब तक न तो केस सेशंस कोर्ट में कमिट (Commit) हुआ था और न ही चार्ज फ्रेम (Charges Framed) किए गए थे।
“हम वाराणसी जिले के मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट तथा अपर मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट, न्यायालय संख्या-5 को निर्देश देते हैं कि तीनों आपराधिक मामलों को आज से दो सप्ताह के भीतर सत्र न्यायालय (सेशंस कोर्ट) को सौंप दें।”
यह टिप्पणी दिखाती है कि जाँच पूरी होने के बावजूद ट्रायल शुरू नहीं हुआ था, क्योंकि कमिटमेंट जैसी मूलभूत कानूनी प्रक्रिया पूरी नहीं हुई थी।
1. यह सिर्फ अपहरण नहीं, अंतरराष्ट्रीय मानव तस्करी है
कोर्ट ने कहा कि यह सिर्फ एक राज्य का मामला नहीं, बल्कि संगठित राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय तस्करी का नमूना है। भारत ने पहले ही पालेर्मो प्रोटोकॉल (Palermo Protocol, 2000) और दक्षिण एशियाई क्षेत्रीय सहयोग संघ सम्मेलन (SAARC Convention, 2002) पर हस्ताक्षर कर रखे हैं, जिनमें बच्चों की तस्करी को मानवता के विरुद्ध अपराध माना गया है।
2. तकनीक को हथियार बनाया जा रहा है
कोर्ट ने कहा कि तस्कर स्मार्टफोन, लोकेशन शेयरिंग, डिजिटल भुगतान और रिमोट पहचान (वीडियो कॉल) जैसे माध्यमों से बच्चों की खरीद-फरोख्त का संगठित नेटवर्क चला रहे हैं।
3. NHRC (National Human Rights Commission — राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग), MHA (Ministry of Home Affairs — गृह मंत्रालय) और AHTU (Anti Human Trafficking Unit — मानव तस्करी विरोधी इकाई) की विफलता
कोर्ट ने पाया कि देशभर में कुल 225 मानव तस्करी विरोधी इकाइयाँ (Anti Human Trafficking Units – AHTU) स्थापित हैं, लेकिन उनमें से केवल 27% ही सक्रिय हैं। NHRC और MHA की निगरानी व्यवस्था को भी “कागज़ी” करार दिया गया।
4. बाल अधिकार संस्थाओं की निष्क्रियता
न्यायालय ने किशोर न्याय बोर्ड (Juvenile Justice Board), बाल कल्याण समिति (Child Welfare Committee) और अन्य संस्थागत ढाँचों की निष्क्रियता को संविधान के प्रति असंवेदनशीलता कहा।
“बाल संरक्षण निष्क्रिय दायित्व नहीं, बल्कि एक सक्रिय संवैधानिक ज़िम्मेदारी है।”
5. स्पष्ट निर्देश: न्याय में देरी नहीं चलेगी
कोर्ट ने आदेश दिया:
- तीनों मामलों को दो सप्ताह में सेशंस कोर्ट में स्थानांतरित किया जाए।
- ट्रायल छह महीने के भीतर पूरा किया जाए।
- राज्य सरकारें गवाहों की सुरक्षा, डिजिटल सबूतों की सुरक्षा और पीड़ितों की पहचान गोपनीय रखने के लिए त्वरित तंत्र विकसित करें।
चार्जशीट और चार्ज फ्रेमिंग: क्या फर्क होता है?
चार्जशीट दाखिल हो जाना और चार्ज फ्रेम होना एक ही बात नहीं होता।
चार्जशीट वह दस्तावेज़ होता है जो पुलिस अपनी जांच के बाद अदालत में प्रस्तुत करती है, जिसमें आरोपी पर लगे आरोपों, धाराओं और सबूतों का विवरण होता है। यह पुलिस की ओर से दाखिल की गई रिपोर्ट होती है — न कि अदालत द्वारा तय किया गया अपराध।
वहीं चार्ज फ्रेमिंग का मतलब है कि अदालत स्वयं यह तय करती है कि दिए गए सबूतों के आधार पर किस अपराध में मुकदमा चलाया जाए। यह एक स्वतंत्र न्यायिक प्रक्रिया है, जो मजिस्ट्रेट/सेशंस कोर्ट द्वारा की जाती है।
इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने आदेश में स्पष्ट किया कि तीनों मामलों में चार्जशीट पहले ही मजिस्ट्रेट अदालत में दाखिल की जा चुकी थी, लेकिन सेशंस कोर्ट में कमिटमेंट (प्रेषण) नहीं हुआ था — और चार्ज फ्रेम भी नहीं हुए थे। इसी के चलते कोर्ट ने दो सप्ताह में कमिटमेंट का निर्देश दिया।
सुप्रीम कोर्ट तक मामला कैसे पहुँचा: कानूनी प्रक्रिया की पूरी श्रृंखला
यह प्रकरण वर्ष 2023 में दर्ज हुआ था और चार्जशीट भी भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 (BNSS) के लागू होने से पूर्व ही दाखिल की गई थी। अतः इसमें आरोपी को दी गई जमानत भारतीय दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 (CrPC) की धारा 439 के तहत ही दी गई थी — न कि BNSS के अंतर्गत।
- तीनों मामलों में एफआईआर दर्ज होने के बाद पुलिस ने जांच पूरी कर चार्जशीट दाखिल की, लेकिन ट्रायल शुरू नहीं हुआ क्योंकि केस अभी सेशंस कोर्ट में कमिट नहीं हुए थे।
- इसी बीच, कई आरोपियों ने इलाहाबाद हाईकोर्ट में ज़मानत याचिकाएं दाखिल कीं, जिसे कोर्ट ने स्वीकार कर लिया और उन्हें शर्तों के साथ ज़मानत मिल गई।
- भारतीय दंड प्रक्रिया संहिता (CrPC) की धारा 439 के अनुसार, कोई भी आरोपी ज़मानत के लिए सीधे सेशंस कोर्ट या हाईकोर्ट जा सकता है — भले केस अभी मजिस्ट्रेट कोर्ट में हो। यही वजह थी कि सेशंस कोर्ट में कमिटमेंट से पहले ही ज़मानत हाईकोर्ट से मिल गई।
- FIR 201/2023 की पीड़िता पिंकी ने आरोपियों को ज़मानत मिलने और फिर उनके फरार हो जाने पर सुप्रीम कोर्ट में आपराधिक अपील दाखिल की। उन्होंने यह भी कहा कि यह तस्करी एक संगठित रैकेट का हिस्सा है और स्थानीय पुलिस या अदालतें इससे सख्ती से नहीं निपट रही हैं।
- सुप्रीम कोर्ट ने न सिर्फ इस अपील को स्वीकार किया, बल्कि अन्य दोनों केस (FIR 193/2023 और 50/2023) की स्टेटस रिपोर्ट मंगवाकर पूरा नेटवर्क समझा।
- इसके बाद कोर्ट ने पाया कि:
- तीनों मामलों में चार्जशीट दाखिल हो चुकी है, लेकिन ट्रायल शुरू नहीं हुआ है।
- जिन आरोपियों को ज़मानत मिली थी, वे पेश नहीं हो रहे और पुलिस उन्हें गिरफ्तार नहीं कर रही।
- सुप्रीम कोर्ट ने कई ज़मानत आदेशों को रद्द कर दिया और निर्देश दिया कि:
- दो सप्ताह में केस सेशंस कोर्ट में ट्रांसफर (commit) किए जाएं।
- छह महीने में ट्रायल पूरा हो।
इस कानूनी प्रक्रिया से यह स्पष्ट होता है कि भले केस तकनीकी रूप से निचली अदालत में लंबित हो, लेकिन यदि आरोपी को ज़मानत मिल जाती है और पीड़िता उससे असहमत है, तो वह सुप्रीम कोर्ट तक जा सकती है — जैसा कि पिंकी ने किया।
सुप्रीम कोर्ट के अंतिम निर्देश: कार्रवाई, सुरक्षा और पुनर्वास का आदेश
सुप्रीम कोर्ट ने आदेश के अंत में पृष्ठ 88–89 पर एक साथ कई निर्णायक निर्देश दिए हैं, जो न सिर्फ इस केस, बल्कि भविष्य की न्यायिक प्रक्रिया को दिशा देने वाले हैं:
- विशेष लोक अभियोजकों की नियुक्ति: राज्य सरकारों को आदेश दिया गया कि तीनों मामलों में अनुभवी और आपराधिक मामलों में विशेषज्ञ विशेष लोक अभियोजक (Special Public Prosecutors) नियुक्त किए जाएं।
- गवाहों और पीड़ित परिवारों की सुरक्षा: राज्य सरकार को गवाहों, बच्चों और उनके परिजनों की सुरक्षा सुनिश्चित करने का निर्देश दिया गया है ताकि किसी भी प्रकार का दबाव या सबूत से छेड़छाड़ रोकी जा सके।
- फरार आरोपियों की गिरफ्तारी: कोर्ट ने सख्ती से कहा कि दो महीने के भीतर जिन आरोपियों की गिरफ्तारी नहीं हुई है, उन्हें खोजकर अदालत में पेश किया जाए।
- बच्चों की शिक्षा और पुनर्वास: तस्करी से मुक्त किए गए बच्चों को स्कूल में दाखिला दिलवाया जाए और शिक्षा का पूरा खर्च सरकार वहन करे, ताकि वे सामान्य जीवन में लौट सकें।
- उत्तर प्रदेश सरकार के ‘रानी लक्ष्मीबाई महिला एवं बाल सम्मान कोष’ सेमुआवज़ा देने का निर्देश: ट्रायल के बाद यदि अपराध सिद्ध होता है, तो बच्चों को न्यायिक आदेश द्वारा उचित मुआवज़ा दिया जाएगा — जो BNSS, 2023 के प्रावधानों अथवा उत्तर प्रदेश सरकार के ‘रानी लक्ष्मीबाई महिला एवं बाल सम्मान कोष’ से दिया जा सकता है। (सरल शब्दों में कहें तो, यह मुआवज़ा उनकी शिक्षा, पुनर्वास और सामाजिक सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए आर्थिक सहायता के रूप में होगा।)
- राज्य सरकारों और हाईकोर्ट को समन्वय निर्देश: सभी राज्य सरकारों और उच्च न्यायालयों को कहा गया कि बाल तस्करी पर केंद्रित केंद्र सरकार की BIRD (Baseline Integrated Report on Trafficking — तस्करी पर आधारित एकीकृत प्रारंभिक रिपोर्ट) रिपोर्ट (12 अप्रैल 2023) की सिफारिशों को लागू करें।
- हाईकोर्ट को ट्रायल शीघ्र पूरा कराने का निर्देश: सभी उच्च न्यायालयों को कहा गया कि वे अधीनस्थ न्यायालयों से यह सुनिश्चित कराएं कि ट्रायल छह महीने में पूरा हो। यह निर्देश प्रशासनिक शक्तियों के अंतर्गत तत्काल लागू किया जाए।
- अवमानना की चेतावनी: यदि कोई सरकारी अधिकारी या संस्था इन आदेशों की अनदेखी करती है, तो उसके विरुद्ध अदालत अवमानना (contempt of court) की कार्रवाई करेगी।
तीन बच्चों के बहाने, देश की आत्मा पर सवाल
यह आदेश केवल एक आपराधिक अपील का निपटारा नहीं था, बल्कि भारतीय न्याय व्यवस्था के समक्ष यह एक गहन आत्मनिरीक्षण की चेतावनी है। सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणियाँ दिखाती हैं कि जब तक ज़मीन पर सिस्टम की जवाबदेही नहीं बनती, तब तक बच्चों की सुरक्षा सिर्फ कागज़ों में ही रहेगी।
जिस देश में ग़ायब बच्चों की संख्या साल दर साल बढ़ रही हो, वहाँ यह आदेश सिर्फ तीन बच्चों की कहानी नहीं, बल्कि हज़ारों मासूमों की अदृश्य चीख़ है।