
“अजय घर चल बाज़ार जाना है। देर हो रही है…”
यह कोई तुकबंदी नहीं, यह उस बच्चे की पुकार है जो पहली कक्षा के छठे दिन अपने हाथ में कलम लेकर वह दुनिया लिख रहा है, जो उसके लिए सबसे ज़्यादा मायने रखती है।
यह हियान की डायरी (कॉपी) है — एक मासूम मन का वह पन्ना, जिसमें बाज़ार जाने की जल्दी भी है, अपने नाम पर गर्व भी है, और “बड़े पापा” के साथ खेलने की बाल सुलभ इच्छा भी।
शब्दों में माँ के स्नेह का स्पर्श
जब हियान अपनी मातृभाषा हिंदी में पहली बार शब्दों को आकार दे रहा था, तो उसके हाथ में पेंसिल ज़रूर थी — पर शब्दों की आत्मा उसकी माँ की उँगलियों से बहकर आ रही थी।
लेखा, हियान की माँ — वही तो है जो उसे रोज़ बिठाकर सिखा रही है कि शब्द कैसे सिर्फ लिखे नहीं जाते, महसूस भी किए जाते हैं। जैसे कोई कुम्हार मिट्टी के गीले गढ़े को धीरे-धीरे आकार देता है, वैसे ही लेखा अपने बेटे के बालमन को माँ की भाषा से गूंथ रही है।
हियान जब कहता है —“मेरा नाम हियान कटारिया है”, तो इसमें सिर्फ नाम नहीं, माँ से मिली पहचान की गूँज होती है।
रिश्तों से भरी कॉपी: एक पारिवारिक चित्रपटी
कॉपी के एक पृष्ठ के सबसे ऊपर लिखा है …मार्केट – MARKET मॉल – MALL यह केवल शब्द नहीं, उस नई दुनिया के पहले संकेत हैं जिसमें हियान धीरे-धीरे प्रवेश कर रहा है। लेकिन इसके तुरंत नीचे वह लौट आता है अपने उन नामों की ओर जो उसके दिल के सबसे करीब हैं:
“राकेश, हियान, नीलेश, लेखा, सलोनी, फेनी, अशोक, राजो, अमित, आरुल, रूमा, हेनिश” हर नाम अपने आप में एक रिश्ता है। एक भावनात्मक जुड़ाव है। यह केवल अक्षरों की सूची या कोई “रोल कॉल” नहीं — पांच वर्षीय हियान का छोटा ब्रह्मांड है।
उसकी आँखों से देखिए, तो यह सब साफ़ दिखता है…
राकेश — पापा, जो उसके जीवन के सबसे मजबूत स्तंभ हैं।
लेखा — मम्मी, जिनके हाथों से रोटी की खुशबू आती है।
नीलेश — बड़े पापा, जो सिर्फ परिवार का हिस्सा नहीं, हियान के सबसे प्यारे खेलने के साथी हैं।
सलोनी और फेनी — बड़े पापा की बेटियां, जिनके साथ वह स्नेह और अपनापन पाकर जीवन के पहले संवाद (conversation) करना सीखता है।
अशोक — पापा के दोस्त, जो हियान को कभी डाँटते हैं, कभी मुस्कराते हैं, और अक्सर मस्ती-मज़ाक में घुल मिल जाते हैं।
राजो — बड़ी मम्मी, जिनकी ममता भी उतनी ही गाढ़ी है जितनी माँ की।
अमित — मामा, जो जब भी मिलते हैं, कुछ खास लाते हैं।
आरुल — ममेरा भाई, जिसके साथ खिलौनों की लड़ाई भी होती है और हँसी भी।
रूमा — बुआ, जिनकी गोद अब भी सबसे सुरक्षित लगती है।
हेनिश — बुआ का बेटा, जिसके साथ मिलकर हियान की दुनिया थोड़ी और बड़ी हो जाती है।
वाक्य जो भावनाओं से भरे हैं…
“अजय घर चल बाज़ार जाना है। देर हो रही है। मेरा नाम हियान कटारिया है। मेरे पापा का नाम राकेश कटारिया है। मुझे बड़े पापा के साथ खेलना पसंद है।”
इस वाक्य में न सिर्फ उसका परिचय है, बल्कि उसके जीवन के सबसे महत्वपूर्ण लोग भी हैं।
बच्चों के लिए दुनिया उतनी ही होती है जितनी उनकी समझ — और इस वाक्य में वह पूरी दुनिया समाई हुई है।
आकृतियाँ जहाँ हँसी के चित्र खिंचे हैं
पन्ने के नीचे बनी दो गोलमटोल आकृतियाँ — मुस्कराते चेहरे, टिक मार्क, तारा और स्माइली — ये कोई ड्राइंग क्लास का अभ्यास नहीं, खुशी के हस्ताक्षर हैं।
शायद ये वही दो हैं — छोटा हियान और उसके बड़े पापा — और उनके बीच वह निशानी कि “हम साथ हैं, और यही सबसे बड़ी खुशी है।”
और माँ का योगदान? वह हर अक्षर में है…
हियान की इस डायरी में माँ कहीं नाम से नहीं आईं, लेकिन हर शब्द, हर भाव, हर पंक्ति में उनकी मौजूदगी है। वह हर उस क्षण में हैं जब हियान को पेंसिल पकड़ने में मदद मिली, जब “र” और “क” के बीच संतुलन सिखाया गया, जब प्यार से कहा गया.. “हियान, आज पापा का नाम अच्छे से लिखो।” माँ कोई अध्यापक नहीं — वह तो एक शब्दों की मूर्तिकार हैं, जो अपने बच्चे को उसकी भाषा में जड़ से जोड़ रही हैं।
अंतिम पंक्तियाँ…
जब एक बच्चा लिखना शुरू करता है, तो वह केवल भाषा नहीं सीखता — वह अपने अस्तित्व को पन्नों पर उतारता है। और जब वह अपनी मातृभाषा में लिखता है, तो हर शब्द उसके संस्कारों की गवाही बन जाता है। हियान की डायरी यही गवाही है — एक माँ के स्नेह की, एक परिवार की छाया की, और एक बच्चे के उजले मन की।
क्योंकि जब माँ भाषा सिखाती है, तो बच्चा केवल शब्द नहीं लिखता — वह अपने भीतर की जड़ें पहचानने लगता है।