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परमादरणीय राजयोगिनी डॉ. दादी रतनमोहिनी जी का ब्रह्मलोक गमन

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–बीके भारत शाह

श्रद्धांजलि विशेष

एक युग, एक चेतना, एक यज्ञ का शिखर दीया आज बुझ गया


अहमदाबाद, 8 अप्रैल। वे केवल एक संस्था की मुखिया नहीं थीं—वे एक युग की जीवंत चेतना थीं। सौ वर्षों से अधिक की तपस्या, सेवा और स्नेह से भरे जीवन की अंतिम लहर आज थम गई। ब्रह्माकुमारीज़ संस्थान की शीर्ष दीपशिखा, परम पूज्या राजयोगिनी डॉ. दादी रतनमोहिनी जी, 8 अप्रैल 2025 को तड़के 1:20 बजे, अहमदाबाद के ज़ायडस अस्पताल में देहत्याग कर बापदादा की गोद में समा गईं। उनका जाना केवल शारीरिक विदाई नहीं, बल्कि करोड़ों आत्माओं की चेतना को गहराई से स्पर्श करने वाली एक दिव्य यात्रा का पूर्ण विराम है।


हर दृष्टि में शांति, हर मुस्कान में स्नेह, और हर क्षण में निस्वार्थ सेवा—यही थीं दादी रतनमोहिनी जी

दादी रतनमोहिनी जी का जीवन: तप, त्याग और तेजस्विता की गाथा

1925 में सिंध (हैदराबाद) में जन्मी दादी जी महज़ 12 वर्ष की आयु में ब्रह्माकुमारी आंदोलन से जुड़ीं। उसी उम्र में उन्होंने जीवनभर ब्रह्मचर्य का संकल्प लेकर इसे परमात्मा की सेवा में समर्पित कर दिया। उनका समर्पण सिर्फ शब्दों तक सीमित नहीं था—वह कार्य और साधना का जीवंत उदाहरण थीं।

1954 में जापान में आयोजित विश्व शांति सम्मेलन में उन्होंने ब्रह्माकुमारी संस्थान का प्रतिनिधित्व किया, और फिर सिंगापुर, मलेशिया, हांगकांग जैसे कई देशों में सेवा कार्य किए। मुंबई से लेकर नेपाल, अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया तक, वे आत्मिक जागरण की प्रेरणा बन गईं।

युवाओं को ऊर्जा और संस्कार से जोड़ने के लिए उन्होंने “स्वर्णिम भारत युवा पदयात्रा” जैसे ऐतिहासिक अभियानों का नेतृत्व किया—जो 30,000 किलोमीटर लंबी थी और लिम्का बुक ऑफ रिकॉर्ड्स में दर्ज हुई। उन्हें 2014 में डॉक्टरेट की मानद उपाधि, 2015 में ‘भारत गौरव पुरस्कार’, और ‘मानवाधिकार रत्न’ जैसे कई सम्मानों से नवाजा गया।

लेकिन इन सम्मानों से कहीं अधिक उनकी असली पहचान थी—एक स्नेहमयी माँ, एक आत्मिक पथदर्शिनी, और एक निस्वार्थ सेविका


तीन दिवसीय अंतिम श्रद्धांजलि एवं संस्कार कार्यक्रम

08 अप्रैल (मंगलवार):

  • शांतिवन में अखंड योग व अंतिम दर्शन

09 अप्रैल (बुधवार):

  • ज्ञान सरोवर, तालवेला हॉस्पिटल, पांडव भवन और अन्य स्थलों पर परिक्रमा
  • चार धाम की यात्रा
  • रात्रि को अखंड योग का आयोजन

10 अप्रैल (गुरुवार):

  • प्रातः 9 बजे अंतिम यात्रा प्रस्थान
  • अंतिम संस्कार: सरस्वती भवन के सामने स्थित उद्यान
  • डायमंड हॉल में स्मृति सभा और भोग

गांधीनगर ब्रह्माकुमारी सेंटर की प्रभारी राजयोगिनी कैलाश दीदी की ओर से श्रद्धांजलि

“हमारे लिए दादी जी केवल एक प्रशासनिक मुखिया नहीं थीं—वे तो संस्था की आत्मा थीं। उनका मौन भी शिक्षा देता था और मुस्कान भी स्नेह बरसाती थी। वे एक ऐसा दीपक थीं, जो स्वयं जलकर लाखों को राह दिखाती रहीं। आज जब वे इस स्थूल शरीर से विदा ले गईं, तो ऐसा लगता है जैसे हमारी पीठ से छांव हट गई हो… लेकिन दादी जी की आत्मा आज भी हमारे बीच विद्यमान है—प्रेरणा, शक्ति और स्मृति बनकर।”

“दादी जी का जीवन हमें यह सिखाता है कि शक्ति और करुणा का संगम ही सच्चा नेतृत्व होता है। हम सब उनके चरणों में कोटिशः नमन करते हैं और उनके दिखाए मार्ग पर चलने का संकल्प दोहराते हैं।”


प्रिय वाणी – जो अब भी प्रतिध्वनित हो रही है…

“जो आत्मा परमात्मा को अपना साथी बना लेती है, उसे कोई और सहारा नहीं चाहिए।”
“सच्ची सेवा वह है जो चुपचाप हो, और आत्माओं की चेतना को छू जाए।”
“योग का अभ्यास आत्मा को संपूर्ण बनाता है—शुद्ध, शक्तिशाली और शांत।”


राजकीय एवं राष्ट्रीय श्रद्धांजलि

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की श्रद्धांजलि

“दादी रतनमोहिनी जी एक अत्यंत प्रभावशाली आध्यात्मिक व्यक्तित्व थीं। वे सदैव प्रकाश, ज्ञान और करुणा की एक अमिट ज्योति के रूप में याद की जाएंगी। उनके जीवन की यात्रा—गहरे विश्वास, सरलता और अडिग सेवा-भावना से परिपूर्ण—आने वाले समय में अनगिनत लोगों को प्रेरित करती रहेगी।
उन्होंने ब्रह्माकुमारीज़ के वैश्विक आंदोलन को उत्कृष्ट नेतृत्व प्रदान किया। उनकी विनम्रता, धैर्य, स्पष्ट चिंतन और करुणा सदैव उल्लेखनीय रही।
वे उन सभी के लिए मार्गदर्शक बनी रहेंगी जो शांति की खोज में हैं और समाज को बेहतर बनाना चाहते हैं।
उनके साथ बिताए क्षण मेरे स्मरण में सदा जीवित रहेंगे।
इस शोक की घड़ी में मेरी संवेदनाएं उनके सभी अनुयायियों और ब्रह्माकुमारी परिवार के साथ हैं।
ओम् शांति।”


मुख्यमंत्री भूपेंद्र पटेल की श्रद्धांजलि

दादी जी का 08 अप्रैल 2025 को निधन अत्यंत दुःखद है। संस्थापक पिता श्री ब्रह्माबाबा के सान्निध्य में बाल्यकाल की अल्पायु से ही उन्होंने आध्यात्मिक सेवाओं में स्वयं को समर्पित कर दिया।
स्व. दादी जी ने शतायु जीवन तक सेवा कार्य करते हुए अंत तक संस्था की सेवा की।
उनका देह त्याग व्यक्तिगत रूप से मेरे लिए भी अत्यंत श्रद्धांजलिपूर्ण क्षण है।
मैं प्रभु से प्रार्थना करता हूँ कि दिवंगत पुण्यात्मा को गति और शांति प्रदान करें।”


राज्यपाल आचार्य देवव्रत की श्रद्धांजलि

“भारत के एक प्रतिष्ठित आध्यात्मिक संगठन ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालय की मुख्य प्रशासिका आदरणीय राजयोगिनी रतनमोहिनी दादी जी के महाप्रयाण का समाचार अत्यंत दुःखद है।
101 वर्ष की आयु में देह त्याग कर परमात्मा के सान्निध्य में पधारी दादी जी ने जीवन के अंतिम क्षणों तक सेवा और संयम का अनुपम उदाहरण प्रस्तुत किया।
मातृ वय की 14 वर्ष की अवस्था में ही संस्था के संस्थापक ब्रह्माबाबा के सान्निध्य में आत्म समर्पण कर उन्होंने सात दशकों से अधिक काल तक मानवता, शांति, योग और नारी जागरण के क्षेत्र में अतुलनीय योगदान दिया।
उनकी सहृदयता, करुणा, अनुशासन और आध्यात्मिक प्रेरणा ने लाखों जीवनों को दिशा दी और ब्रह्माकुमारी संगठन को नई ऊँचाइयों तक पहुँचाया।
उनके दिखाए मार्ग पर चलकर ही उन्हें सच्ची श्रद्धांजलि दी जा सकती है।
ओम् शांति।”


’खुली किताब’ की ओर से श्रद्धांजलि

’खुली किताब’  न्यूज़ पोर्टल टीम की ओर से हम दादी रतनमोहिनी जी को कोटि-कोटि नमन करते हैं।
उनका जाना सिर्फ एक संस्था की क्षति नहीं, बल्कि एक युग का अंत है।
वे न सिर्फ ब्रह्माकुमारी परिवार की धरोहर थीं, बल्कि आध्यात्मिक भारत की भीतरी शक्ति का प्रतीक थीं।

“दादी जी, आपने जो संकल्प और संस्कार हमें दिए हैं, वे युगों तक हमारे साथ रहेंगे। आप सशरीर नहीं सही, पर हमारी चेतना में सदा जीवित रहेंगी। ओम् शांति।”

 

क्या मीडिया की चुप्पी हादसों की असली वजह जानने के जनता के अधिकार को नुकसान पहुँचाती है?

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