
यूट्यूब से कोर्ट रूम तक
नई दिल्ली, 14 फरवरी। सोशल मीडिया पर लाखों युवाओं के आदर्श और ‘बीयर बाइसेप्स’ नाम से मशहूर यूट्यूबर रणवीर इलाहाबादिया इन दिनों कानूनी पचड़े में बुरी तरह फंस गए हैं। जिस शख्स को लोग सफलता और प्रेरणा का प्रतीक मानते थे, वही अब अश्लीलता फैलाने के आरोपों का सामना कर रहा है। देशभर में उनके खिलाफ कई प्राथमिकी (FIR) दर्ज हो चुकी हैं। अब रणवीर ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है, लेकिन सवाल यह है कि क्या डिजिटल दुनिया की ये बेलगाम उड़ान अब उतरने वाली है?
रणवीर इलाहाबादिया उन यूट्यूबर्स में शामिल हैं, जो अपने पॉडकास्ट और वीडियो के जरिए लाखों लोगों तक पहुंच रखते हैं। उनकी बातों को लोग सिर आंखों पर रखते थे, लेकिन हाल के दिनों में उनके कुछ वीडियो और सोशल मीडिया पोस्ट ने विवाद खड़ा कर दिया। आरोप है कि उन्होंने अपने प्लेटफॉर्म पर ऐसा कंटेंट डाला, जो अश्लीलता को बढ़ावा देता है और समाज की नैतिकता पर चोट करता है।
इस विवाद के बाद देश के अलग-अलग हिस्सों में उनके खिलाफ एफआईआर दर्ज कराई गईं। सोशल मीडिया पर भी उनकी जमकर आलोचना हो रही है। लोगों का कहना है कि लोकप्रियता पाने के चक्कर में रणवीर जैसे लोग भूल जाते हैं कि उनकी बातें सीधे युवा पीढ़ी को प्रभावित करती हैं।
रणवीर ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल कर इन सभी मुकदमों को रद्द करने की गुहार लगाई है। उनका तर्क है कि एक ही मामले को लेकर देश के अलग-अलग हिस्सों में केस दर्ज करना उन्हें अनावश्यक रूप से परेशान करने जैसा है। लेकिन कानून के जानकारों का कहना है कि मशहूर हस्तियों को यह समझना चाहिए कि सार्वजनिक मंच पर कही गई उनकी हर बात का समाज पर असर पड़ता है।
इस पूरे मामले ने एक गंभीर बहस को जन्म दिया है।क्या सोशल मीडिया की आड़ में यूट्यूबर्स और इन्फ्लुएंसर्स कुछ भी परोसने के लिए आजाद हैं? क्या फॉलोअर्स बढ़ाने और लाइक्स पाने की होड़ में वे सामाजिक मूल्यों और मर्यादाओं को ताक पर रख रहे हैं?
रणवीर का मामला केवल एक व्यक्ति का नहीं है, यह उस पूरी पीढ़ी के कंटेंट क्रिएटर्स के लिए एक चेतावनी है, जो इंटरनेट को अपनी मनमानी का अखाड़ा समझ बैठे हैं। सुप्रीम कोर्ट का फैसला चाहे जो भी आए, लेकिन यह साफ हो गया है कि अब डिजिटल दुनिया में भी जवाबदेही तय करने का वक्त आ गया है।
सोशल मीडिया की ताकत को नकारा नहीं जा सकता, लेकिन यह ताकत जिम्मेदारी के साथ इस्तेमाल न की जाए, तो यही मंच किसी के करियर को बुलंदियों से गिराकर कानूनी शिकंजे में भी ला सकता है। रणवीर इलाहाबादिया का मामला इसका ताजा उदाहरण है।
देखना यह है कि सुप्रीम कोर्ट इस याचिका पर क्या फैसला सुनाती है। लेकिन एक बात तो तय है—सफलता की सीढ़ियां चढ़ते वक्त पैर फिसलने से बचने के लिए मर्यादा और सामाजिक जिम्मेदारी की बैसाखी हमेशा साथ रखनी चाहिए। वरना, इंटरनेट की दुनिया जितनी जल्दी सिर पर बैठाती है, उतनी ही तेजी से नीचे गिरा भी देती है।