नाम बदले जाएंगे, लेकिन हालात कब बदलेंगे ?

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     कड़वा-मीठा सच        नीलेश  कटारिया

मध्यप्रदेश, 14 फरवरी। मध्यप्रदेश में हाल ही में मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने एक बड़ी घोषणा की है। उन्होंने देवास जिले के 54 गांवों के नाम बदलने की प्रक्रिया शुरू करने का ऐलान किया है। यह घोषणा विगत दिनों देवास जिले के सोनकच्छ के पीपलरावां गांव में आयोजित एक कार्यक्रम में की। इस दौरान भाजपा जिलाध्यक्ष रायसिंह सेंधव ने जनभावना का हवाला देते हुए मुख्यमंत्री के सामने वर्षों पुरानी मांग दोहराई कि देवास जिले के कई गांवों के नाम बदले जाएं। उन्होंने 54 गांवों की एक सूची भी सौंपी। मुख्यमंत्री ने जनता की इस भावनात्मक मांग को स्वीकार करते हुए नाम बदलने की प्रक्रिया जल्द शुरू करने के निर्देश दे दिए।

मुख्यमंत्री के इस निर्णय के बाद न सिर्फ देवास बल्कि पूरे प्रदेश में यह चर्चा का विषय बन गया है। कुछ लोग इसे सांस्कृतिक गौरव लौटाने की दिशा में बड़ा कदम मान रहे हैं, तो कुछ इसे महज राजनीतिक दिखावा करार देकर आलोचना कर रहे हैं। सवाल यह उठता है कि आखिर गांवों और शहरों के नाम बदलने की जरूरत क्यों महसूस होती है? क्या यह पूरे देश के लिए सही है? इसके फायदे हैं या नुकसान?

भारत में नाम बदलने की परंपरा नई नहीं है। आजादी के बाद से ही देश के कई शहरों और स्थानों के नाम बदले गए हैं। अंग्रेजों और मुगलों के समय जिन स्थानों के नाम रखे गए थे, उन्हें बदलकर स्थानीय संस्कृति और ऐतिहासिक पहचान के अनुरूप करने की मांग समय-समय पर उठती रही है। मुंबई पहले बॉम्बे था, चेन्नई पहले मद्रास, प्रयागराज पहले इलाहाबाद, और मुगलसराय अब पंडित दीनदयाल उपाध्याय नगर हो गया है। मध्यप्रदेश में 54 गांवों के नाम बदलने की मांग भी इसी सोच का हिस्सा है। स्थानीय लोग मानते हैं कि पुराने विदेशी शासन के समय रखे गए नाम हटाकर अपने देशी नाम रखने से उन्हें अपनी संस्कृति और इतिहास पर गर्व महसूस होता है।

नाम बदलने के समर्थकों का कहना है कि इससे जनता में अपनी मिट्टी और पहचान को लेकर सम्मान बढ़ता है। लोगों को लगता है कि अब उनके गांव का नाम उनके गौरवशाली इतिहास और संस्कृति से जुड़ा है। खासकर अंग्रेजों और मुगलों की गुलामी के दौर की यादें मिटाने के लिए यह जरूरी बताया जाता है। कई लोग इसे मानसिक गुलामी की जंजीरों को तोड़ने की तरह देखते हैं। इसके अलावा, अगर किसी इलाके के लोग लंबे समय से नाम बदलने की मांग कर रहे हों और सरकार उनकी बात मान ले, तो इससे जनता और सरकार के बीच विश्वास और नजदीकी बढ़ती है। लोगों को लगता है कि सरकार उनकी भावनाओं का आदर कर रही है।

नए नाम अक्सर किसी वीर योद्धा, स्वतंत्रता सेनानी, महापुरुष या किसी ऐतिहासिक घटना से जुड़े होते हैं। इससे बच्चों और युवाओं को अपने इतिहास और देश के गौरवशाली अतीत के बारे में जानने और समझने का अवसर मिलता है। इस तरह नाम बदलना केवल पहचान बदलना नहीं, बल्कि यह एक भावनात्मक जुड़ाव और सांस्कृतिक पुनर्जागरण का प्रतीक बन जाता है।

हालांकि, नाम बदलने का दूसरा पहलू भी है, जिसे अक्सर नजरअंदाज कर दिया जाता है। किसी गांव, शहर या सड़क का नाम बदलने के बाद सरकारी रिकॉर्ड, नक्शे, दस्तावेज, पहचान पत्र, जमीन के कागज, बिजली-पानी के बिल, स्कूल-कॉलेज की मार्कशीट जैसे तमाम कागजातों में बदलाव करना पड़ता है। यह प्रक्रिया लंबी, झंझट भरी और खर्चीली होती है। सरकार को नए साइनबोर्ड, स्टेशन बोर्ड, रोड संकेत, कार्यालयों की नेमप्लेट बदलने में करोड़ों रुपये खर्च करने पड़ते हैं। यह पैसा शिक्षा, स्वास्थ्य, सड़क, पानी जैसी बुनियादी जरूरतों में भी लगाया जा सकता था।

नाम बदलने के बाद आम लोगों को भी दिक्कत होती है। वर्षों से जिस जगह को एक नाम से जाना जाता रहा हो, अचानक उसका नाम बदलने से भ्रम की स्थिति पैदा होती है। डाक सेवा, परिवहन, यात्रा, नक्शों और ऑनलाइन लोकेशन जैसी सुविधाओं में कुछ समय तक परेशानी हो सकती है। खासकर बुजुर्ग और बाहर से आने वाले लोग अक्सर पुराने नाम ही याद रखते हैं, जिससे कई बार असमंजस की स्थिति पैदा होती है।

कुछ मामलों में नाम बदलने के फैसले पर समाज में असहमति और विवाद भी देखने को मिलते हैं। कुछ लोग नए नाम का समर्थन करते हैं, तो कुछ पुराने नाम को बनाए रखने के पक्ष में रहते हैं। ऐसे में सामाजिक एवं सांप्रदायिक टकराव और तनाव की स्थिति बन सकती है।

इन सबके बीच सबसे बड़ा सवाल यह है कि क्या नाम बदलने भर से जनता की समस्याएं हल हो जाएंगी? क्या सिर्फ नाम बदलने से गांवों में पानी, सड़क, अस्पताल, स्कूल, बिजली जैसी मूलभूत सुविधाएं बेहतर हो जाएंगी? कई लोग मानते हैं कि नाम बदलने से ज्यादा जरूरी है कि सरकार गांवों और शहरों का विकास करे। जनता के जीवन में असली बदलाव तब आएगा, जब उनके पास रोजगार होगा, अच्छी सड़कें होंगी, बच्चों के लिए अच्छे स्कूल और बीमारों के लिए अच्छे अस्पताल होंगे।

मुख्यमंत्री द्वारा 54 गांवों के नाम बदलने की घोषणा को जनता की भावनाओं का सम्मान बताया जा रहा है। लेकिन यह भी जरूरी है कि नाम के साथ-साथ उन गांवों के हालात भी बदले जाएं। नाम में भले ही इतिहास और संस्कृति की झलक हो, लेकिन अगर गांव के लोगों की जिंदगी में कोई सुधार नहीं होता, तो यह बदलाव अधूरा रह जाएगा।

यह कहना उचित होगा कि नाम बदलना अच्छा कदम हो सकता है, बशर्ते यह जनता की इच्छा से और सोच-समझकर किया जाए। साथ ही, विकास कार्यों को प्राथमिकता देना भी उतना ही जरूरी है। नाम के साथ-साथ लोगों की जिंदगी में भी बदलाव आए, तभी यह पहल पूरी तरह सफल मानी जाएगी।

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