
कोच्चि, 12 फ़रवरी । केरल उच्च न्यायालय ने हाल ही में एक महत्वपूर्ण निर्णय में एक मां द्वारा अपने पूर्व पति के खिलाफ पॉक्सो अधिनियम के तहत दायर मामले को रद्द कर दिया। अदालत ने कहा कि कुछ मामलों में पति-पत्नी अपने नाबालिग बच्चों का उपयोग एक-दूसरे के खिलाफ झूठे आरोप लगाने के लिए करते हैं, ताकि बच्चे की कस्टडी के मामले में लाभ प्राप्त किया जा सके।
मामले के अनुसार, मां ने आरोप लगाया था कि उसके पूर्व पति ने फैमिली कोर्ट परिसर में अस्थायी कस्टडी के दौरान बच्चे के साथ अनुचित व्यवहार किया और आपत्तिजनक टिप्पणियां कीं। बच्चे ने पुलिस को बयान दिया कि उसके पिता ने उसके जननांग को छुआ था। इसके आधार पर, पिता के खिलाफ पॉक्सो अधिनियम की विभिन्न धाराओं के तहत मामला दर्ज किया गया।
आरोपी पिता ने उच्च न्यायालय में याचिका दायर कर इन आरोपों को निराधार बताते हुए मामले को रद्द करने की मांग की। उन्होंने तर्क दिया कि ये आरोप कस्टडी विवाद में उन्हें नुकसान पहुंचाने के उद्देश्य से लगाए गए हैं। मां ने इन दावों का खंडन करते हुए कहा कि आरोप बच्चे द्वारा लगाए गए हैं और उसने बच्चे को किसी भी तरह से प्रभावित नहीं किया है।
न्यायमूर्ति ए. बदरुद्दीन ने पाया कि शिकायत घटना के पांच दिन बाद दर्ज की गई थी और यह विश्वास करना कठिन है कि याचिकाकर्ता ने अदालत परिसर में सीमित समय के दौरान नाबालिग पर यौन हमला किया होगा। अदालत ने कहा कि पॉक्सो अधिनियम का उद्देश्य बच्चों को यौन शोषण से बचाना है, लेकिन कुछ मामलों में इसका दुरुपयोग भी होता है।
अदालत ने निष्कर्ष निकाला कि ये आरोप मां द्वारा कस्टडी विवाद में लाभ प्राप्त करने के लिए लगाए गए हैं और इस प्रकार मामले को रद्द कर दिया।
इस निर्णय के साथ, केरल उच्च न्यायालय ने उन मामलों पर चिंता व्यक्त की है जहां पॉक्सो अधिनियम का दुरुपयोग कर नाबालिग बच्चों के माध्यम से झूठे आरोप लगाए जाते हैं, जिससे वास्तविक पीड़ितों के लिए न्याय की प्रक्रिया प्रभावित होती है।