
अहमदाबाद। महाराष्ट्र की शराब विक्रेता एसोसिएशन द्वारा जनहित में दायर की गई याचिका को व्यक्तिगत मानते हुए गुजरात उच्च न्यायालय ने खारिज करते हुए कहा कि पीड़ित शराब विक्रेता अपनी शिकायत संबंधित प्रशासनिक अधिकारी के समक्ष करें। एसोसिएशन ऑफ प्रोग्रेसिव रिटेल लिकर वेंडर्स के अध्यक्ष अरविंद मिस्की ने एडवोकेट ध्रुविन मेहता द्वारा उच्च न्यायालय में एक जनहित याचिका दायर की गई थी। याचिका में शराब विक्रेताओं ने गुजरात पुलिस एवं आबकारी विभाग के अधिकारियों पर यह आरोप लगाया था की गुजरात राज्य में अवैध रूप पकड़ी जाने वाली शराब के चलते उन्हें अनायास प्रताड़ित किया जाता है।
हाई कोर्ट की मुख्य न्यायाधीश सुनीता अग्रवाल एवं न्यायाधीश अनिरुद्ध पी. मायी की खंडपीठ के समक्ष पेश की गई याचिका में कहा गया था एसोसिएशन के सदस्य मुंबई, ठाणे और पालघर में शराब का व्यवसाय करते है। वे महाराष्ट्र सरकार द्वारा अधिकृत रूप से शराब विक्रेता के तौर पर पंजीकृत है। ऐसे में गुजरात राज्य में नशाबंदी कानून के तहत बूटलेगर या अन्य व्यक्ति शराब के साथ पकड़ा जाता है तो गुजरात आबकारी विभाग के अधिकारी एवं पुलिस उन्हें परेशान करती है। जबकि, वे महाराष्ट्र राज्य में अपनी सीमा क्षेत्र में अधिकृत रूप से उपभोक्ताओं को शराब विक्रय करते है। यदि कोई उनसे शराब खरीद कर गुजरात ले जाता है और नशाबंदी एक्ट के तहत पकड़ा जाता है तो गुजरात के संबंधित प्रशासनिक अधिकारी आए दिन प्रशासनिक कारवाई के चलते उन्हें परेशान करते है।
याचिका में गुजरात राज्य के संबंधित विभाग को निर्देशित करने का आग्रह करते हुए कहा गया था कि उन्हें उपरोक्त विभाग के अधिकारियों द्वारा परेशान नहीं किया जाए। जनहित याचिका में एसोसिएशन रजिस्ट्रेशन सर्टिफिकेट संलग्न नही होने के कारण खंडपीठ ने इस मामले को व्यक्तिगत मानते हुए याचिका को खारिज कर दिया। खंडपीठ ने कहा कि कोर्ट द्वारा इस तरह की प्रशासनिक कारवाई में हस्तक्षेप नहीं किया जा सकता है। यदि कोई प्रशासनिक अधिकारी अवैधानिक रूप से प्रताड़ित करता है तो पीड़ित विक्रेता को सीधे संबंधित विभाग के उच्च अधिकारियों के समक्ष गुहार लगानी चाहिए।